गायत्री जप साधना :
"जप" शब्द का वैदिक अर्थ इस तरह से किया जाता है । "ज" का अर्थ होता है जन्मो की मुक्ति एवं "प " का अर्थ होता है पापो का नाश हो जाना , गुरुदेव कहते है गायत्री मंत्र साधना एक ऐसा "जप योग" है की जिसकी साधना से जीव अपने जन्मो जन्म के पापो से मुक्ति पा सकता है । गायत्री मंत्र की जप साधना को मंत्र साधना या मंत्र योग भी कहते है।
इस महा मंत्र के नित्य जप से मन केन्द्रित हो जाता है एक तंत्र में बंध जाता है , व्यक्ति मानसिक रूप से बलवान बन जाता है। परिणाम स्वरुप व्यक्ति रोग,शोक,भय,पीड़ा जैसी नरक तुल्य अवस्था से मुक्त हो कर प्रेम, वात्सल्य,करुणा, आनंद जैसी स्वर्गीय अवस्था को प्राप्त करता है।
"गायत्री महाविज्ञान" के अनुसार जप के तिन प्रकार होते है वाचिक,उपांश और मानस ।
वाचिक: वाचिक का अर्थ होता है मुह से स्पष्ट उच्चारण द्वारा की जाने वाला जप जो हम नित्य यज्ञ कर्मकांड में करते है,
उपांश : मंद स्वरसे मुह के अन्दर से किया जाने वाला जप उपांश कहलाता है जिसे हम माला के रूप में नित्य करते है.गुरुदेव कहते है की गायत्री साधक ने कम से कम ३ माला प्रतिदिन करनी चाहिए.
मानस : अर्थात मन ही मन में किया जाने वाला जप ,यह हमें अपनी दिनचर्या में नियमित रूपसे करना चाहिए ।
वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से देखे जाने पर यह सिद्ध हुआ है की इस मंत्र के शब्दों के उच्चारण की ध्वनि से प्रचंड शक्ति का प्रादुर्भाव होता है, इन शब्दों के ध्वनि तरंग (फ्रिक्वंसी ) को आल्फा वेव्स कहते है, जिसकी तरंग की लम्बाई ८ से १३ प्रति सेकंड होती है, और यही तरंग मनके एकाग्र होने पर भी होती है। इन तरंगो से व्यक्ति के सूक्ष्म एवं स्थूल अंग कम्पित होजाते है और यह तरंग इथर (अवकाश)को आंदोलित करते है परिणाम स्वरुप व्यक्ति इथर(अवकाश) के माध्यम से व्यक्ति दैवीय सकारात्मक उर्जा एवं शक्ति से जुड़ जाता है।
जब व्यक्ति में चिंता, व्यग्रता, भय बढ़ जाते है तब उसे कई तरह के नकारात्मक विचार आने लगते है , इन विचारो के आक्रमण से उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है और उसके विवेक का नाश होजाता है , वह क्रोध, शंका, जैसे विकारो से ग्रस्त हो जाता है और परिस्थिति को और संकटपूर्ण बना देता है ।
इन नकारात्मक विचारो से मुक्ति पाने के लिए नित्य गायत्री जप साधना सर्व सामान्य जन के लिए उत्तम पर्याय है। इसके निरंतर जप के आन्दोलन से सकारात्मक उर्जा अपने आप आकर्षित हो कर व्यक्ति में प्रवेश करती है , उसके मानसिक स्तर का विकास होने लगता है , मन के एकाग्र होने से श्रद्धा ,विश्वास ,विवेक ,सहनशीलता, त्याग, आत्मसंयम , सकारात्मक द्रष्टिकोण, भय से मुक्ति जैसे दैवीय गुणों का प्रादुर्भाव अपने आप होने लगता है। जिसके परिणाम धीरे धीरे व्यक्ति विपरीत परिस्थितियो में भी श्रद्धा और विश्वास के द्वारा स्वर्गीय वातावरण का निर्माण कर देता है।
गायत्री मंत्र को कामधेनु कहा गया है , इसकी मंत्र साधना से व्यक्ति अकल्पनीय फलो की प्राप्ति कर सकता है, अनेक सिद्धियों का स्वामी बन सकता है, लेकिन उसके लिए मन का स्वच्छ, निर्मल और श्रद्धा युक्त होना जरूरी है , विकार ग्रस्त मन से गायत्री कभी भी फलित नहीं होती।
जय गुरुदेव.........
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