गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012

Dharm ka Arth......Kya????

धर्म का अर्थ क्या?

     धर्म के नाम पर कई गलत मान्यताए सदियोंसे  से मनुष्य  मस्तिस्क एवं मनुष्यजीवन में समिलित हो गई है। ऐसी गलत मान्यताए जनसामान्य को गलत राह  पर चलने को प्रेरित करती है एवं कर रही है । परिणाम स्वरूप हम देख रहे है मनुष्य सदियों से मनुष्य जाती का दुश्मन बन बैठा है। 

 हमारा धर्म श्रेष्ठ है, हमारा  धर्म पुस्तक श्रेष्ठ है, हम इस देवता को मानते है , हमारे धर्म को अपनानेसे स्वर्ग की प्राप्ति होंगी ऐसी अहंकार युक्त धारणा से ग्रसित मनुष्य पशुवत बन गया है। धर्म के नाम पर न जाने कितने युध्ध हो गए , असंख्य निर्दोष लोगो की जाने गई , कई देश तबाह हो गए या कर दिए गए लेकिन फिरभी इस धारणा का अंत नहीं हुआ।


तब प्रश्न यह आता है की वास्तव में धर्म क्या है ? क्या धर्म यह है? कई ज्ञानीजानो ने धर्म की व्याख्या अपने अपने शब्दों में की है और वह सही भी है परन्तु हम यहाँ भगवान श्री महावीर स्वामी के शब्दों में देखेंगे  " वात्थू  सहवो धम्मो " अर्थात वस्तु  का जो स्वाभाव है वाही उसका धर्म है , जैसे तत्वों में अग्नि का स्वभाव दाह है , वायु का स्वभाव शीतलता है, पशुओ में शेर का स्वभाव हिंसा है ,वानर का स्वभाव चंचलता है .....वैसे ही मनुष्य का स्वभाव है ज्ञान ,दर्शन एवं चरित्र का शोधन कर आत्मा को उच्च श्रेणी में लेजाना और यही आत्मा का मूल स्वभाव है। 


कहने का अर्थ है मनुष्य को चाहिए की श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त कर अपने चरित्र को शुध्ध कर अपने आत्मा की उन्नति की राह  पर चलना। और यही बात समजाने सदियोसे कई महात्माओ ने , ऋषीओ ने, पीरो ने , पय्गाम्बरो ने अपने जीवन भर की तपस्चर्या  प्राप्त इस  ईश्वरीय  सन्देश को  अपनी अपनी भाषाओ में मनुष्य जीवन  के उत्थान हेतु जन सामान्य  को अर्पण किये, लेकिन स्वार्थी  मनुष्यों ने  इस ज्ञान को अपनाने या दुसरो को देने  की बजाए  स्वार्थवत  पुस्तकों में तब्दील कर उसे धर्म ग्रंथ  बना दिया । अब यह ग्रन्थ मनुष्य का धर्म बन गया है। आज इस विश्व में जितने ग्रन्थ है उतने धर्म है। 


आज मनुष्य अपने मूल स्वाभाव को भूल गया है , उसने  शेर जैसे हिंसक प्राणी का गुण धारण कर लिया,  बंदर बन गया ,  लोमड़ी बन गया , गधा बन गया लेकिन अपने आप को भूल गया यह  एक विटंबना है। ज्ञानीजनों  को चाहिए की धर्म पुस्तकों का मोह छोड़ उसमे लिखे संदेशो का सही अध्ययन कर उसे जीवन में उतारे,सत्य की रह पर चल  अपना एवं दुसरे मनुष्य का कल्याण करे, अपनी आत्मा को दैवात्मा बनाये।


जय गुरुदेव ........

1 टिप्पणी:

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