सोमवार, 5 दिसंबर 2011

अंध श्रद्धाओ का समर्थन हानिकारक है .........


" अंध श्रद्धाओ का समर्थन भी जोखिम भरा है। किसी के साथ अनगढ़ , अधकचरे, अपरिपक्वो की मण्डली हो, तो वह उसे जनशक्ति समजने की भूल करता रहता है किसीकी श्रद्धा एवं आत्मीयता कितनी गहरी है, इसका पता चलाने का मापदंड यह भी है की वे विसंगतियों के बिच भी स्थिर रह पाते  है या नहीं? जो अफवाहों की फूंक से उड़ सकते है वे वस्तुतः बहुत ही हलकी ओर उथले होते है। ऐसे लोगो का साथ किसी बड़े प्रयोजन के लिए कभी कारगर सिद्ध नहीं हो सकताउन्हें कभी भी, कोई भी कहकर विचलित कार सकता हैऐसे विवेकहीन लोगों की छटनी कर देने के लिए कुचक्रियों द्वारा लगाए गए आरोप या आक्रमण बहुत ही उपयोगी सिद्ध होते है

योद्धाओ की मण्डली में शूरवीरों का स्तर ही काम आता है। शंकालु,अविश्वासी,कायर प्रकृति के सैनिको की संख्या भी पराजय का एक बड़ा कारण होती है। ऐसे मूढ़मतियों को अनाज में से भूसा अलग कर देने तरह की यह आक्रमणकरीता बहुत ही सहायक सिद्ध होती है। दुरभिसंधियों के प्रति जनाक्रोश उभरने से सुधारात्मक आन्दोलनों का पक्ष सबल ही होता है। कुसमय पर ही अपने पराये की परीक्षा होती है। इस कार्य को आततायी जितनी अच्छी तरह सम्पन्न करते है, उतना कोई ओर नहीं। अस्थिर मति ओर प्रकृति के साथियों से पीछा छुट जाना ओर विवेकवानो का समर्थन, सहयोग बढ़ना जिन प्रतिरोधो के कारण संभव होता है वह आक्रमणों की उतेजना उत्पन हुए बिना संभव ही नहीं होता। "

अखंड ज्योति, अगस्त १९७९ , पृष्ठ - ५३,५४

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