सोमवार, 5 दिसंबर 2011

युग ऋषि की भविष्यवाणी .......


मजबूत आधारशीला रखना है.....

" युग निर्माण योजना की मजबूत आधारशिला रखे जाने का अपना मन है। यह निश्चित है की निकट भविष्य में ही एक अभिनव संसार का सृजन होने जा रहा है । उसकी प्रसव पीड़ा में अगले दस वर्ष अत्यधिक अनाचार, उत्पीडन, दैवीय कोप, विनाश ओर कलेश कलह से भरे बीतने है । दुष्प्रवृत्तियों का परिपाक क्या होता है, इसका दंड जब भरपूर मिलेंगा तब आदमी बदलेगा। यह कार्य महाकाल करने जा रहा है। हमारे हिस्से में नवयुग की आस्थाओ ओर प्रक्रियाओ को अपना सकने योग्य जन मानस तैयार करना है लोगो को यह बताना है की अगले दिनों संसार का एक राज्य , एक धर्म, एक अध्यात्म, एक समाज, एक संस्कृति , एक कानून, एक आचरण , एक भाषा ओर एक द्रष्टिकोण बननेजा रहा है, इसलिए जाति, भाषा, देश, संप्रदाय आदि की संकीर्णताए छोड़ें ओर विश्वमानव की एकता की , वसुधैव कुटुंबकम की भावना स्वीकार करने के लिए अपनी मनोभूमि बनाये ।

लोगो को समजना है की पुराने से सार भाग लेकर विकृत्तियों को तिलांजलि दे दें। लोकमानस में विवेक जाग्रत करना है ओर समजाना है की पूर्व मान्यताओ का मोह छोड़कर जो उचित उपयुक्त है केवल उसे ही स्वीकार शिरोधार्य करने का साहस करे सर्वसाधारण को यह विश्वास कराना है की धन की महत्ता का युग अब समाप्त हो चला, अगले दिनों व्यक्तिगत संपदाए न रहेंगी, धन पर समाज का स्वामित्व होगा । लोग अपने श्रम एवं अधिकार के अनुरूप सिमित साधन ले सकेंगे। दौलत ओर अमीरी दोनों ही संसार से विदा हो जाएँगी। इसलिए धन के लालची बेटें - पोतों के लिए जोड़ने - जोड़ने वाले कंजूस अपनी मुर्खता को समजे ओर समय रहते स्वल्प संतोषी बनने एवं शक्तियों को संचय उपयोग से बचाकर लोकमंगल की दिशाओ में लगाने की आदत डाले। ऐसी-ऐसी बहुत बातें लोगों के गले उतरनी है, जो आज अनर्गल जैसी लगती है।

संसार बहुत बड़ा है, कार्य अति व्यापक है, हमारे साधन सिमित है। सोचते है एक मजबूत प्रक्रिया ऐसी चल पड़े जो अपने पहिये पर लुढ़कती हुई उपरोक्त महान लक्ष्य को सिमित समय में ठीक तरह पूरा कार सके । "

-अखंड ज्योति,मार्च १९६९, पृष्ठ ५९,६०


आत्मीय परिजन .......

गुरुदेव उपरोक्त लेख के द्वारा आने वाले समय की भविष्यवाणी करते हुए हमें सचेत कर रहे है एवं हमें आने वाले कठिन समय में क्या क्या करना है इसके उपलक्ष में दिशा निर्देश कर रहे है ।

यहाँ गुरुदेव ने स्पष्ट कहा है की आदमी में बदलाव तभी मुमकिन है जब वह अपनी दुष्प्रवृत्तियों के परिणाम स्वरुप दण्डित हो, स्वयं से लज्जित हो या उसे अपने किये हुए दुष्कर्मो का प्रायाश्च्चित हो । लेकिन वैसा तभी हो सकता है जब इन्सान का विवेक जाग्रत हो जाए। विवेक का अर्थ होता है ज्ञान से लेकिन ज्ञान गुरु कृपा के बिना संभव नहीं , हम खुशनसीब जो हमें इस जनम में ऐसे गुरु मिले जिनकी कृपा से आज हम इस युग परिवर्तन की महान योजना के भागीदार बन सके। आने वाले समय में महाकाल तो अपना कार्य करेगा ही लेकिन हमें सावधान होकर इस बदलते युग के साथ कदम मिलाना सीखना है एवं दुसरो कों भी सिखाना है ।

हम गुरुदेव के बेटे /बेटियां है, हम अपने आप को इस परिवर्तन की बेला में प्रज्ञावान बनायेगे ताकि दुसरो को विवेकवान बनने में सहायता कर सके। पुरानी मान्यताएं, रुढी- परंपराओ ओर कुसंस्कारो को छोड़ नए विचारोसे नाता जोड़ेंगे . आधुनिकता , विज्ञानं एवं अध्यात्म का समन्वय करने से ही नयी पीढ़ी को विवेकवान बनाया जा सकता है। आधुनिकता से कतराने की बजाये उससे निकटता बरतनी चाहिए, क्योकि हम स्वयं सेवी है हमारे लिए हर मनुष्य एक जैसा होना चाहिए हमें निष्ठां पूर्वक इस कार्य को करना है एवं करेंगे .......

जय गुरु देव........

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