आत्मीय परिजन......
जय गुरुदेव....
आज कई दिनों के बाद कुछ लिखने की प्रेरणा हुई , लेकिन विषय क्या है अब तक तय नहीं कर पा रहे है , फिर भी कुछ प्रश्न ऐसे है जिनका जवाब खोजना है। हमारे एक गुरु भाई किसी कारण वश हमसे यह प्रश्न कर बैठे की " आप अध्यात्म के बारे में क्या जानती हो? क्या आप अध्यात्म समजती हो?" इस प्रश्न ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया की अध्यात्म क्या है वह जो हम ने गुरु साहित्य से समजा ओर जाना है या वह जो भाईजी हमें समजाना चाहते थे. कुछ भी हो लेकिन अध्यात्म ऐसी दिव्या अनुभूति है जहा स्वयं कोई आस्तित्व नहीं रहेता, अध्यात्म ऐसा मार्ग है जो हमें अपने स्वभावागत सत्य से अवगत करा देता है , अध्यात्म ऐसा क्रिया कलाप है जिससे सत गुणों की वृध्धि एवं तम गुणों का नाश होता है, अध्यात्म आत्मा को श्रेष्ठता की और ले जाने वाला दैवीय मार्ग है।
अध्यात्म का सरल अर्थ होता है आत्म का अध्ययन याने स्वयं का अभ्यास करना, यह कैसे होता है ? गुरदेव ने कहा है की दुसरो के बारे में सोचने की बजाय अपने गुण एवं अवगुण का अभ्यास करो , अपनी कमियों को पहेचान कर उसे दूर करो, अपनी आत्मा को श्रेष्ठ बनाने के लिए प्रयत्नशील रहो।
संस्कृत व्याकरणानुसार "अध्यात्म" शब्दांर्त्गत अद धातु का अर्थ ग्रहण करने से है। यह परस्मायी पद है। और इसका स्वाभाव वहन या गति से है यानि अंग्रेजी में POTENTIAL है। "आत्म" शब्द का गुण अहंकार युक्त है। अदादी धातु से कई गति सवभाव वाले शब्द बनते है, जैसे की अध्ययन , अध्याय,अध्यापन यह सभी शब्द अद धातु युक्त ग्रहण करने के भाव से निश्चित गति से अपने संकल्प की और बढ़ने का अर्थ बताते है। अत: अध्यात्म शब्द का अर्थ है " अद याने ग्रहण या अभ्यास करना, ध्यायेन याने संकल्प पूर्वक, आत्मा याने स्वयं के गुणों को"।
गीता के शलोक में कहा है" स्वभावोध्यात्ममुच्यते " अर्थात स्वभाव को अध्यात्म कहा गया है। यहाँ स्वभाव का अर्थ कार्य एवं कारण के समूह रूप इस देह का अवलंबन कर आत्मा विषयो को भोगता है से है। प्रत्येक देह में परब्रह्म का जो अंश है जिसे हम आत्मा कहते है उसे दुर्गुणों से रहित कर परमात्मा स्वरुप बनाने की गतिविधि को अध्यात्म कहते है।
हम अविवेक से अध्यात्म का अनुचित अर्थ निकलते है परन्तु सर्ववादी सत्य यह है की अध्यात्म हमें अन्य प्रपंचादी क्रिया कलापों को छोड़ अपने गुण अवगुण का शोधन कर आत्मा का परिष्कार करने का विवेक बताता है। हम श्रेष्ठता की और कदम बढ़ाते हुए मानव बने, मानव से महा मानव , एवं महा मानव से देव मानव बने।।।।
जय गुरुदेव....
आज कई दिनों के बाद कुछ लिखने की प्रेरणा हुई , लेकिन विषय क्या है अब तक तय नहीं कर पा रहे है , फिर भी कुछ प्रश्न ऐसे है जिनका जवाब खोजना है। हमारे एक गुरु भाई किसी कारण वश हमसे यह प्रश्न कर बैठे की " आप अध्यात्म के बारे में क्या जानती हो? क्या आप अध्यात्म समजती हो?" इस प्रश्न ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया की अध्यात्म क्या है वह जो हम ने गुरु साहित्य से समजा ओर जाना है या वह जो भाईजी हमें समजाना चाहते थे. कुछ भी हो लेकिन अध्यात्म ऐसी दिव्या अनुभूति है जहा स्वयं कोई आस्तित्व नहीं रहेता, अध्यात्म ऐसा मार्ग है जो हमें अपने स्वभावागत सत्य से अवगत करा देता है , अध्यात्म ऐसा क्रिया कलाप है जिससे सत गुणों की वृध्धि एवं तम गुणों का नाश होता है, अध्यात्म आत्मा को श्रेष्ठता की और ले जाने वाला दैवीय मार्ग है।
अध्यात्म का सरल अर्थ होता है आत्म का अध्ययन याने स्वयं का अभ्यास करना, यह कैसे होता है ? गुरदेव ने कहा है की दुसरो के बारे में सोचने की बजाय अपने गुण एवं अवगुण का अभ्यास करो , अपनी कमियों को पहेचान कर उसे दूर करो, अपनी आत्मा को श्रेष्ठ बनाने के लिए प्रयत्नशील रहो।
संस्कृत व्याकरणानुसार "अध्यात्म" शब्दांर्त्गत अद धातु का अर्थ ग्रहण करने से है। यह परस्मायी पद है। और इसका स्वाभाव वहन या गति से है यानि अंग्रेजी में POTENTIAL है। "आत्म" शब्द का गुण अहंकार युक्त है। अदादी धातु से कई गति सवभाव वाले शब्द बनते है, जैसे की अध्ययन , अध्याय,अध्यापन यह सभी शब्द अद धातु युक्त ग्रहण करने के भाव से निश्चित गति से अपने संकल्प की और बढ़ने का अर्थ बताते है। अत: अध्यात्म शब्द का अर्थ है " अद याने ग्रहण या अभ्यास करना, ध्यायेन याने संकल्प पूर्वक, आत्मा याने स्वयं के गुणों को"।
गीता के शलोक में कहा है" स्वभावोध्यात्ममुच्यते " अर्थात स्वभाव को अध्यात्म कहा गया है। यहाँ स्वभाव का अर्थ कार्य एवं कारण के समूह रूप इस देह का अवलंबन कर आत्मा विषयो को भोगता है से है। प्रत्येक देह में परब्रह्म का जो अंश है जिसे हम आत्मा कहते है उसे दुर्गुणों से रहित कर परमात्मा स्वरुप बनाने की गतिविधि को अध्यात्म कहते है।
हम अविवेक से अध्यात्म का अनुचित अर्थ निकलते है परन्तु सर्ववादी सत्य यह है की अध्यात्म हमें अन्य प्रपंचादी क्रिया कलापों को छोड़ अपने गुण अवगुण का शोधन कर आत्मा का परिष्कार करने का विवेक बताता है। हम श्रेष्ठता की और कदम बढ़ाते हुए मानव बने, मानव से महा मानव , एवं महा मानव से देव मानव बने।।।।
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