उद्देश्य पूर्ति में सहायक बने .....
" आपत्तिग्रस्त व्यक्तियों की सहायता करना भी धर्म है। फिर जिसने कोई कुटुंब बनाया हो उस कुलपति का उत्तरदायित्व तो और भी अधिक है । गायत्री परिवार के परिजनों की भौतिक एवं आत्मिक कठिनाइयों के समाधान में हम अपनी तुच्छ सामर्थ्य का पूरा पूरा उपयोग करते रहे । कहने वालों का कहना है की इससे लाखों व्यक्तियों को असाधारण लाभ पंहुचा होंगा । पर हमें उससे कुछ अधिक संतोष नहीं हुआ । हम कहते थे की वह माला जपने वाले लोग -हमारे शारीर से नहीं हमारे विचारों से प्रेम करे, स्वाध्यायशील बने, मनन चिंतन करें, अपने भावनात्मक स्तर को ऊँचा उठावे और उत्कृष्ट मानव निर्माण करके भारतीय समाज को देव समाज के रूप में परिणत करने में हमारे उद्देश्य को पूरा करें । परवैसा न हो सका। अधिकांश लोग चमत्कारवादी निकले। वे न तो आत्मनिर्माण पर विश्वास न लोकनिर्माण में।आध्यात्मिक व्यक्तियों का जो उत्तरदायित्व होता है उसे अनुभवनकार सके। हम हर परिजन से बार -बार, हरबार अपना प्रयोजन कहते रहे, पर उसे बहुत कम लोगोने सुना, समजा। मंत्र का जादू देखने वे लालायित रहें, हम उनमे से काम के आदमीदेखते रहें। इस खींचतान को बहुत दिन देख लिया तो हमें निराशा भी उपजी ओर झल्लाहट भी हुई। मनोकामना पूर्ण करने का जंजाल अपने या गायत्रीमाता के गलेबंधना हामारा उद्देश्य कदापी न था। उपासना की वैज्ञानिक विधि व्यवस्था अपनाकर आत्मोन्नति के पथ पर क्रमबद्ध रूप से आगे बढ़ते चले जाना हमें अपने स्वजन परिजनों से आशा थी ,पर वे उस कठिन दिखनेवाले काम को झंझट समजकर कतराते रहें। ऐसे लोगोंसे हमारा क्या प्रयोजन पूरा होता ???? "
अखंड ज्योति , अक्टूबर १९६६ , पृष्ठ ४५,४६
आत्मीय परिजन .......
यह अंतर वेदना गुरुदेव ने सन १९६६ में अखंड ज्योति द्वारा जताई थी । आज इस बात को ४५ साल हो गए लेकिन क्या हम गुरुदेव के प्रयोजन को पूरा कर रहे है ????? हमें लगता है हमारी संख्या बेशक बढ़ गयी लेकिन गुरुदेव के उद्देश्य को या तो हम समझ नहीं पाए या समझना नहीं चाहते .... जो भी हो हमें अब सावधान हो जाना है और संकल्पित होना है .....
" हम संकल्प ले रहे है की निम्नलिखित कार्य करने का प्रयास जरूर करेंगे "
१) गुरुदेव के विचारों से प्रेम करेंगे। नित्य स्वाध्याय ,मनन, चिंतन करेंगे।
२) जन सामान्य को संस्कारित कर उत्कृष्ट बनाने का प्रयोजन करेंगे।
३) गायत्री उपासना को वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से अपना कर आत्मोन्नति के पथ पर बढ़ने का प्रयास करेंगे।
जय गुरुदेव .....
आत्मीय परिजन .......
यह अंतर वेदना गुरुदेव ने सन १९६६ में अखंड ज्योति द्वारा जताई थी । आज इस बात को ४५ साल हो गए लेकिन क्या हम गुरुदेव के प्रयोजन को पूरा कर रहे है ????? हमें लगता है हमारी संख्या बेशक बढ़ गयी लेकिन गुरुदेव के उद्देश्य को या तो हम समझ नहीं पाए या समझना नहीं चाहते .... जो भी हो हमें अब सावधान हो जाना है और संकल्पित होना है .....
" हम संकल्प ले रहे है की निम्नलिखित कार्य करने का प्रयास जरूर करेंगे "
१) गुरुदेव के विचारों से प्रेम करेंगे। नित्य स्वाध्याय ,मनन, चिंतन करेंगे।
२) जन सामान्य को संस्कारित कर उत्कृष्ट बनाने का प्रयोजन करेंगे।
३) गायत्री उपासना को वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से अपना कर आत्मोन्नति के पथ पर बढ़ने का प्रयास करेंगे।
जय गुरुदेव .....
aaj gurudev ke sapne sakar kerne ka samya hai
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