आत्मीय परिजन......
पूज्य वर गुरुदेव एवं वन्दनीय माताजी के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम
देवतुल्य भाइओ और शक्ति स्वरूप माताओ एवं बहनों !!!
क्या कहे और क्या लिखे , दिनांक ८ नवम्बर की घटना से ह्रदय द्रवित हो उठा था ,मन मानने को तैयार नहीं था जैसे मानो समय स्थगित हो गया है, बुद्धि विचार करने को मजबूर हो गई थी लेकिन दिल अनेक भावो से ग्रसित हो गया था , चारो और से तरह तरह की बाते सुनाई पड़ रही थी , सारे लोग अपनी अपनी और से घटना का विवरण और विश्लेषण कर रहे थे ।
आरोप और प्रत्यारोप के माहोल के बिच आस्था लड़खड़ाने लगी थी , लेकिन पूज्यवर गुरुदेव एवं माताजी के ऊपर का अतूटविश्वास हम लोगो को शांति और सद भावना बनाये रखने में सहयोग कर रहा था, यही शांति अगर हम ८ नवम्बर को रख पाते तो परिणाम कुछ और होता, लेकिन फिर भी जैसी गुरुदेव की इच्छा !!!!!
इस घटना को सकारात्मक द्रष्टिकोण से या सुक्ष्म दृष्टी से देखा जाये तब एकही बात महसूस हो रही है, हमें असुर तत्वों पर दैवी तत्वों का विजय महसूस हो रहा है , हमारे अंग अवयव में बसे गुरुदेव ने इस सृजन संधान यज्ञ को सफल बनाने के लिए असुरी विचारो से भीषण युद्ध किया है और विजय प्राप्त किया है , चाहे कुछ पल के लिए ही सही लेकिन असुरो ने हमारे कुछ परिजनों की बुध्धि पर हमला कर उन्हें विवेक हीन कर दिया लेकिन गुरुदेव ने पलक ज़पकते ही उस असुरी विचारो पर हमला कर उसे परास्त करदिया ,हमें बड़े नुकशान से बचा लिया वर्ना इतिहास गवाह है की ऐसी स्थिति में असंख्य जन हानी हुई है, गुरुदेव पर श्रद्धा और अतूट विश्वास ही हमें संयम खोने से बचाता है , हमारे विवेक को जीवित रखता है।
आदि काल से देव और दानवो के बिच के संग्राम का विवरण हमने सुना एवं पुराणों में पढ़ा है, जब कभी भी जनहित प्रयोजन हेतु या दैवी अनुकम्पा पा ने के लिए हमारे रुषीगणों ने यज्ञो का आयोजन किया करते थे दानव उसे ध्वस्त करने आ जाते थे, असुर सत्ता कभी नहीं चाहेगी की मनुष्य में दैवी गुणों का प्रादुर्भाव हो वे मनुष्य पे अपना अधिपत्य स्थापित करना चाहते है हमे अपना गुलाम बनाना चाहते है , गुरुदेव ने प्रज्ञापुराण के द्वारा हमें बताया है की कलयुग में असुर मनुष्य के दिमाग में घुस कर विचारो को नकारात्मक बना देते है और अच्छेखासे इन्सान को दानव में तब्दील करदेते है, और यहाँ यही हुआ।
इस यज्ञ के आयोजन के पूर्व से लेकर आज तक गायत्री परिवार के सभी परिजन एवं कार्यकर्ता अपनी मनस्थिति का अगर ईमानदारी निष्पक्ष हो कर अभ्यास करे और अपने आप से कुछ प्रश्न करे तो गुरुदेव हमें जरूर ज्ञात कराएँगे की क्या हमारे विचारो में असुर वृति का प्रादुर्भाव हुआ था या नहीं? क्या हम में अहंकार की मात्र बढ़ी थी या नहीं? क्या हम अपने आप को श्रेष्ठ मान रहे थे या नहीं ? क्या हम में असंतोष की मात्र बढ़ी थी या नहीं ? क्या हम दुसरे परिजनों को धृणा से देखते थे या नहीं ? क्या हमने अपने वरिष्ठो के प्रति असंतोष महसूस किया था या नहीं? अगर हमें उत्तर "हा" में मिलता है तो यह बात उतनी ही सत्य है जीतनी यह कहावत " दिया तले अँधेरा " हम दुसरो के सुधार ने की प्रतिस्पर्धा में अपना सुधार करना ही भूल गए, मनमे कषाय कल्मश भर हम गायत्री मंत्र के अनुष्ठान पे अनुष्ठान करते गए पुरोहित बन हम ने कर्मकांड तो लोगो को सिखाया लेकिन क्या कर्मकांड को अपने जीवन में उतारा? फल स्वरुप हम में अहंकार की मात्र बढ़ने लगी हमारी संवेदना ख़त्म हो गयी हम " हम से मै " बन गए और यही रास्ता है दानवो के हमारे विचारो में प्रवेश करने का हम में दैवी गुण बढ़ने की बजाय आसुरी गुण बढ़ने लगे , फिर भी गुरुदेव हमें समय समय पर संकेत देते रहे, हमें बचाते रहे, इस असुरी सत्ता से युद्ध करते रहे लेकिन हमारे अहंकार ने विवेक का हनन कर दिया है , हम हर क्रिया कलाप को नकारात्मक दृष्टी से देखेने लगे है , हम सभी में से सकारात्मकता का नाश हो ने लगा है।
भाइयो और बहनों अब भी वक्त है !!! हमें हमारी मानसिकता को बदलनी होंगी और एक बात गांठ बांध लेनी है की "गुरुदेव को युगपरिवर्तन के लिए युगसैनिको की जरूरत है कर्मकांडी पुरोहितो की नहीं....." क्या हम गुरुदेव के सच्चे बेटे है ? क्या हम अपने को गुरुदेव के अंग अवयव मानते है ? अगर जवाब " हा " है तब हमें लोकसेवी बनना है स्वाहा स्वाहा करने वाला पंडित नहीं ।
हम बदलेंगे युग बदलेंगा इस तथ्य पर सिर्फ विश्वास करना ही नहीं इस तथ्य पर अमल करना भी उतना ही जरूरी है
आपकी सेविका बहन
श्रीकती तरुलता पटेल
aapne bilkul sahi likha hai. ham aapki baat se sahmat hai.
जवाब देंहटाएंKafi sundar shabdo me aapne tathya ko prastut kiya hai..jai gurdev
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