गुरुवार, 22 दिसंबर 2011


भाव विज्ञानं :

पुराणों से विदित होता है की सृष्टि के रचेता ने आत्मा की अभिव्यक्ति से ही इस सृष्टि का निर्माण किया है, परमात्मा को भाव हुआ ओर सृष्टि की रचना हो गई भावमय परमात्मा के भाव से ही भावमय सृष्टि का निर्माण हुआ है इस बात से यह ज्ञात होता है की इस सृष्टि के सदस्य होने के कारण हमारा अंतरंग जीवन या बहिरंग जीवन भावनाओ के आधार पर ही प्रतिफलित होता है हम जैसी भावना करते है वैसा ही हमारे जीवन में घटित होता है, जिसका हमें कई बार अनुभव होता है।

सृष्टि के हर जीव के मन, कल्पना ,बुद्धि, विचार, कर्म यह सब भावना के आधार पर ही बनते-बदलते रहते है जिस तरह के भावतरंग हम अन्तरिक्ष में छोड़ते है उसी तरह की भाव तरंगे किसी किसी रूप में किसी भी माध्यम से हम तक पहुचती है। हमारे जीवन में या आस पास जो घटना घटित होती है वह हमारी भावनाओ का ही प्रतिबिम्ब या प्रतिफल ज्ञात होता है

भावना एवं प्राण तत्व का सम्बन्ध : भावना से ही प्राण का वहन हो ता है . छोटे से उदहारण से बात समजने की कोशिश करेंगे . हमें कई बार ऐसा अनुभव हुआ है ओर सभी के जीवन में यह अनुभव होता है जैसे कोई मरीज कई दिनों से अपना इलाज करवा रहा है कितनी तरह की दवाओ के लेने पर भी पर कुछ भी परिणाम नहीं होता है परन्तु जब उसके चाहने वाले या सबंधी उसे देखने आते है तब वह एकदमसे ठीक होजाता है या फिर उसकी स्थिति में सुधार होने लगता है ऐसा चमत्कार क्यों होता है ? क्यों की भावना से प्राण का वहन होता है , उस मरीज में प्राण तत्व की कमी की वजह से उसका शरीर रोग ग्रस्त हो गया था लेकिन उसके चाहने वालो की भावना उसे ठीक देखना चाहती थी इसलिए उन्होंने अनजाने में ही सही लेकिन अपने प्राण शरीर से प्राण तत्व उस मरीज के शरीर में वहन कर उसे रोग मुक्त कर दिया। देखने को तो यह बात अंध श्रद्धा से लिप्त लगती है परन्तु यह एक विज्ञानं की दिशाधारा है आज कई लोग रेकी एवं ओरा हीलिंग तकनीक से लोगो के कष्ट मिटाते है यह उदहारण भावना से प्राण तत्त्व के वहन कही है

भावना एवं गुणों का सम्बन्ध: जिस प्रकार सृष्टि तिन गुणों (सत,रज ओर तम) के समन्वय से बनी है उसी प्रकार भावना भी इस तिन गुणो से लिप्त है जिस गुण की मात्रा अधिक होंगी वैसा ही भाव प्रकट होगा सतो गुण से सतभाव तमोगुण से तमभाव या दूरभाव , इस तरह से गुणों का प्रभाव भावनाओ की अभिव्यक्ति पर होता है। आज के दौर में मनोवैज्ञानिक यह सिद्ध कर चुके है की तनाव ग्रस्त ,भय ग्रस्त मरीजो को सामूहिक रूप से ऐसी भावना करने को कहे की सारा संसार प्रेम , आनंद , शांति से भरा है तब धीरे धीरे उस मरीज के स्वभाव में परिवर्तन आने लगता है ,ऐसे कई प्रयोग हो रहे है ओर होते रहेंगे लेकिन यह बात हमारे शास्त्र में पहलेसे बताई गयी है भावना की अभिव्यक्ति में गुणों का प्रभाव निश्चित है इसलिए भावना की शुध्धिकरण के की लिए सत गुणों का अविर्भाव भी होना उतना है जरुरी है

अन्न से भावना का संबंध: "जीव जीवस्य भोजनम" यह उक्ति इस सृष्टि के उस रूप को दर्शाती है जो सर्वादी सत्य है इस सृष्टि में हर जीव अपने आप को जीवित रखने के लिए दुसरे जीव को भोजन के रूप में ग्रहण करता है इस तरह तो अपने जीवन को बचाए रखने के लिए कोई भी जीव का भक्ष्य करना उचित माना जाना चाहिए, फिर भी शास्त्र इसकी इजाजत नहीं देता। शास्त्र के अनुसार सतगुण युक्त भोजन करना उचित है। भोजन के रूप में जब किसी जीव की हत्या की जाती है तब उसके आक्रंद से उत्पन्न हुई भावना तरंगो का इस पृथ्वी जगत पर बड़ा गहरा एवं विपरीत असर होता है यह भावना तरंग मनुष्य के भावो को तमो भाव में तब्दील करने में सक्षम है ,जिसके परिणाम स्वरुप इस धरती पर मनुष्य में तमोगुण की वृद्धि होती है ओर चारो ओर मनुष्य असुर प्रवृति करता नज़र रहा है। सत गुण युक्त भोजन जिसमे दूध , बिज वगैरह भक्ष्य करने से सत गुणों की वृद्धि होती है एवं सत भावनाओ का प्रादुर्भाव होता है।

" भावे हि विद्यते देव: तस्मात भावो हि कारणम " अर्थात भावना से ही देवताओ का साक्षात्कार याने उनसे अनुदान प्राप्त किया जा सकता है, भावना ही देवो का निवास है लेकिन भावना एक उफान है भावना में बह कर मनुष्य उचित अनुचित के भेद नहीं कर सकता, इस लिए भावना को विविक एवं ज्ञान से परिपूर्ण हो कर दिशाबद्ध किया जाना चाहिए , भावना में सतो गुण की मात्रा बढ़नी चाहिए । ज्ञान रहित एवं विवेकहिन् भावना दुष्कार्य एवं दुष्परिणाम का कारण बन सकती है । भावना के साथ ज्ञान का संयोग होना अनिवार्य है. गुरुदेव कहते है की ज्ञान की परिपक्वता से विश्वास उपजता है तथा भावना की परिपक्वता से श्रद्धा है। ज्ञान ओर भावना का संयोग से ही इश्वर साक्षात्कार संभव है केवल भावना या केवल ज्ञान से नहीं।

जय गुरुदेव......


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