सोमवार, 28 नवंबर 2011

अष्ट सिद्धि नव निधि की दाता, सब समर्थ गायत्री माता !!!!!


आत्मीय परिजन ........जय गुरुदेव........

अष्ट सिद्धि : गायत्री चालीसा हम नित्य पठन करते है, इस की रचना में एक पंक्ति में अष्ट सिद्धियों के बारे में बताया गया है , यह अष्ट सिद्धियाँ क्या है यह प्रश्न हमें नित्य ही सोचने पर मजबूर करता था , सिद्धि का अर्थ कुछ मुर्ख लोग सस्ती जादूगरी जैसे हवामे उड़ना ,पानी पे चलना , हवा में से अलंकारो को निकलना समजते है लेकिन गुरुदेव ने इस के बारे बड़े विस्तार पूर्वक बताया है और ऐसे विचारो का खंडन किया है ।
सिद्धि का सरल अर्थ है "जिस उपाय से साधना मार्ग में अग्रसर होने में सहायता एवं प्रोत्साहन मिलता है उसे सिद्धि कहते है । "
सिद्धि के आठ प्रकार बताये गए है क्रम से ऊह ,शब्द ,अध्ययन , सुह्रुत्प्राप्ति और दान यह पांच एवं दुखों को दूर करने वाली तिन सिद्धि या कुल मिला के आठ सिद्धिया है जो मोक्ष प्राप्त करने में सहायक होती है ।
अब हम इनका संक्षिप्त परिचय करेंगे ।
) ऊह : किसी व्यक्ति को जन्म से ही तत्व ज्ञान प्राप्त हो जाता है जो उसके पूर्व जन्मो के फल स्वरुप होता है और अन्यास वह साधना मार्ग पर प्रेरित हो मोक्ष प्राप्त कर लेता है ।
) शब्द : इसका अर्थ गुरु से होता है , गुरु द्वारा मंत्र दीक्षा लेकर इसके नियमित पठन द्वारा तत्व ज्ञान प्राप्त कर साधक आद्यात्मिकता की और अग्रेसर होता है ।
) अध्ययन : अनेक गुरुजनों से विद्या प्राप्त करके भी कभी पूर्ण ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती अत: निरंतर अध्ययन करना आवश्यक है। इसके द्वारा मुक्ति तक पहुचना सुनिश्चित हो जाता है ।
)सुह्रुत्प्राप्ति: इसका सरल अर्थ है सत्संग हमको अचानक विद्वान पुरुष या संत महात्मा का संसर्ग मिल जाता है और सत्संग करते करते तत्वज्ञान प्राप्त होने में सहायता मिलजाती है ।
) दान : यह बात उतनी ही सत्य है की दानी व्यक्ति को सत्संग सुलभ हो जाता है क्यों की दानी व्यक्ति के पास संत महात्माओ को नित्य संसर्ग रहता है और इससे उसे तत्वज्ञान प्राप्ति सुलभ हो जाती है । और यह ही मोक्ष मार्ग है ।
यह पाच सिद्धियाँ तत्वज्ञान की प्राप्ति में सहायक है और गायत्री साधक इसे स्वाभाविक रूप से प्राप्त कर लेता है। जिससे उसे मार्गदर्शन मिलता है और वह अगली तिन सिद्धियाँ जो इसके फल स्वरूप है उसे प्राप्त कर लेता है वह क्रमशः आध्यात्मिक दुःख हान, आधि भौतिक दुःख हान , आधि दैविक दुःख हान है।
) आध्यात्मिक दुःख हान : इस सिद्धि से सभी आध्यात्मिक दुःख दूर हो जाते है। आत्मा को शारीर या मन से होनेवाले दुःख को अध्यात्मिक दुःख कहते है।
) आधि भौतिक दुःख हान : इस सिद्धि से सभी भौतिक दुःख विनिष्ट होजाते है। शारीर को चोट लगना, किसी विषेले प्राणी से कट लेना , धन की चोरी होजाना, बीमार होजाना यह सब आधि भौतिक दुःख है।
) आधि दैविक दुःख हान : इस सिद्धि से सभी दैविक दुखों से निवृति हो जाती है। अतिवृष्टि ,अनावृष्टि, भूकंप, बाढ़ आजाना वगैरे वगैरे आधि दैविक दुःख कहलाते है।

उपरोक्त आठ सिद्धियों में आखरी तिन सिद्धियाँ त्रिविध दुखोसे निवृति प्रदान करने वाली है अर्थात गायत्री शक्ति अष्ट सिद्धि दायिनी एवं त्रिविध ताप हरता है ।
गायत्री साधना अष्ट सिद्धि को प्राप्त कर तत्वज्ञान को अर्जित कराती है यह मोक्ष मार्ग है अत: हमें श्रद्धा एवं विश्वास पूर्वक इस पथ पर आगे बढ़ना होगा

जय गुरु देव .........

आपकी सेविका बहन
श्रीमती तरुलता patel

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